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वो क्यों कहेंगे के हम दोनों खैर से जी लें हमारी जंग से जिनकी कमाई जारी है

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उसके किसी से मोहब्बत थी और वो मैं नहीं था ये बात मुझसे ज़्यादा उसे रुलाती थी

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तन्हा ही सही लड़ तो रही है वो अकेली बस थक के गिरी है अभी हारी तो नहीं है

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ईद के दिन की तरह तुमने मुझे ज़ाया किया मैं समझता था मोहब्बत से गुज़ारोगे मुझे

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यार बिछड़कर तुमने हँसता बसता घर वीरान किया मुझको भी आबाद न रखा, अपना भी नुकसान किया

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पागल कैसे हो जाते हैं देखो ऐसे हो जाते हैं ख़्वाबों का धंधा करती हो कितने पैसे हो जाते हैं

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सादा हूँ और Brands पसंद नहीं मुझको, मुझ पर अपने पैसे ज़ाया मत करना

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सारे मर्द की एक जैसे हैं तुमने कैसे कह डाला मैं भी तो एक मर्द हूँ तुमको खुद से बेहतर मानता हूँ

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कोई शहर था जिसकी एक गली मेरी हर आहट पहचानती थी, मेरे नाम का इक दरवाज़ा था इक खिड़की मुझको जानती थी

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किसी बहाने से उसकी नाराज़गी खत्म तो करनी थी उसके पसंदीदा शायर के शेर उसे भिजवाए हैं

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