SHAYARI BY - SIRFSHAYARI
मै क्या बताऊं कैसी परेशानियों में हूं, काग़ज़ की एक नाव हूं और पानियों में हूं.!
कर के बेचैन मुझे फिर मेरा हाल ना पूछा, उसने नजरें फेर ली मैने भी सवाल ना पूछा !!
छुपे रहे वो अपने ही किरदार में हम देख कर भी अनदेखा करते रहे
बीच राह में कुछ इस अंदाज़ से छोड़ा उसने हाथ मेरा, कोई अब सहारा भी दे तो घबरा जाता हूं मैं!
अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
जिस्म खुश, रूह उदास लिए फिरते हो ये किस किस्म की मोहब्बत किए फिरते हो।
मुझे फुर्सत कहां, कि मैं मौसम सुहाना देखूं… तेरी यादों से निकलूं, तब तो जमाना देखूं..!
चुपके चुपके रात दिन आसूं बहाना याद है हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है।।
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