गुलाब हैरान है ये कैसा मंज़र है, एक शख़्स में खुशबु मुझसे बेहतर है
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शरमा कर छोड़ दे यूँ दरिया में घूमना… मछलियाँ, डूबे मेरे यार के पैर जो पानी में देख ले
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उलझ गए हैं हम उसकी ज़ुल्फ़ों के जाल में, ये वो गिरफत है जिससे कभी रिहाई नहीं चाहते
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सीखा दिया है उसने मौसमों को बदलना, कभी धुप सताती है कभी ये बेमौसम बारिश
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कुछ खुदा ने उसको नूर ही ऐसा दिया कुछ उसने भी ज़ुल्फ़ ऊँगली से कानों पे लगाए
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निकल गया था और बारिश आ गयी, बादल क्या जाने तुझसे मिलना कितना ज़रूरी है मेरे लिए
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आज दिल ने तेरे दीदार की ख्वाहिश रखी है, मिले अगर फुरसत तो ख्वाबों मे आ जाना
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कुछ कह रही है धड़कनें तुम्हारी, मैं सुन सकूँ मेरे इतने तो करीब आओ
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बड़ी मुश्किल से आज उनका ख्वाब आया है, ऐ रात तू ज़रा थम कर गुज़र
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बाल संवारने से लेकर चोटी तक बनाऊंगा, तू एक बार हाँ तो कर जान, मैं तेरे लिए रोटी भी बनाऊंगा
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